फेसबुक पर दिखेगा सरकार का चेहरा!
सरकार का बनता बिगड़ता चेहरा अब फेसबुक पर देखने को मिल सकता है। ट्विटर पर उसकी चहचहाहट भी सुनने को मिलेगी शायद। जनता गलत मांग कर रही है या सरकार अड़ियल है। सोशल मीडिया के जरिए यह बात साफ की जाएगी, ताकि वोटर एक्स पार्टी फैसला न सुनाएं।हिसार में कुल जमा खर्च के हिसाब के बाद सरकार को शायद अब ये समझ में आ रहा है कि टीम अन्ना की मुहिम अंडर करेंट की तरह काम कर रही है। उसने पहली बार इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं किया कि वह बुजुर्ग गांधीवादी की ताकत के असर को भांप पाने में नाकाम रही। सरकार में समझदार और संजीदे बयान के लिए पसंद किए जाने वाले केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मंगलवार को बाकायदा यह बात मानी कि हम उनकी मुहिम के असर से बेखबर रहे। मेरा मानना है कि खुर्शीद एक मंझे और नवोन्मेषी (इनोवेटिव) राजनेता की तरह सोचते हैं। वे ठस्स विचारधारा के नहीं हैं। तभी तो उन्होंने कहा है कि हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने में चूक गए जबकि इसी के सहारे अन्ना की सेना अपनी मुहिम चलाती रही। कानून .मंत्री का यह बयान भी काबिले गौर है कि सरकार भी अब सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर के जरिए अपनी बात और हर मुद्दे पर अपना स्टैड जनता तक पहुंचाएगी।
बदलाव की जो मंद-मंद बयार बह रही है कि सरकार को उसे पट्टी बंधी आंखों से नहीं, खुली आंखों से देखना ही होगा। सलमान खुर्शीद मन मसोसते हुए यह कहते हैं कि हमें इस बात का भान ही नहीं हुआ कि समाज में चारों ओर वैचारिक तौर पर इतना बदलाव आ गया है। दरअसल, टीम अन्ना की ओऱ से छोड़े गए कई शस्त्र सरकार पर सटीक निशाना लगा गए। रामलीला मैदान में उमड़ा जनसैलाब, हिसार उप चुनाव में कांग्रेस कैंडीडेट की जमानत राशि जब्त होना। इन प्रहारों से सरकार के रणनीितकारों की आंख तो कम से कम खुल ही गई है। यही वजह है कि मजबूत लोकपाल, राइट टु रिकॉल, राइट टु रिजेक्ट को लेकर सरकार ने काम भी शुरू कर दिया है। कानून मंत्री ने कह दिया है कि राइट टु रिकॉल, राइट टु रिजेक्ट
पर सर्वदलीय बैठक में राय मशविरा किया जाएगा।चुनाव आम आदमी की ताकत है औऱ इसी ताकत के बूते प्रजा तंत्र में वह राज करता है। जन अधिकारो की लड़ाई लड़ने वाले लोग सही तो कहते हैं अपनी ताकत को पहचानो। कहीं से धुआं उठा जो अब चिंगारी बनकर चारों ओर फैल रहा है। सरकार अब जनहित के नए बिल लाएगी, सबकुछ अच्छा करेगी, फेस बुक पर स्टेटस अपडेट करेगी। ट्विटर पर चहकेगी भी।
हिसार का हिसाब
हिसार उपचुनाव में वही हुआ जिसकी उम्मीद थी। हरियाणा जनहित कांग्रेस के भाजपा समर्थित उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई के सिर जीत का सेहरा बंधा है। इनेलो उम्मीदवार अजय चौटाला दूसरे नंबर पर रहे जबकि कांग्रेस उम्मीदवार जयप्रकाश की जमानत जब्त हो गई है। टीम अन्ना ने इस चुनाव में कांग्रेस का खुला विरोध किया था। नतीजों से वह बेहद उत्साहित है, लेकिन राजनीतिक पंडित इसमें उसे कतई श्रेय नहीं दे रहे हैं।
बिश्नोई आईएनएलडी के अजय चौटाला से 6,323 मतों के अंतर से जीते। त्रिकोणीय मुकाबला रहा हालांकि इसमें 40 उम्मीदवार मैदान में थे। दो को छोड़कर सबकी जमानत जब्त हो गई। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 13.32 लाख थी। उपचुनाव में नौ लाख से अधिक मत पड़े। बिश्नोई को 3,55,941 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर रहे चौटाला को 349618 वोट मिले। जयप्रकाश इस लड़ाई में 149785 वोट पाने के साथ ही जमानत भी गंवा बैठे।
चुनाव विश्लेषक अभी भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि क्या अन्ना टीम के अभियान से नतीजों पर फर्क पड़ा है, लेकिन बिश्नोई ने दावा किया कि इसका उनके प्रदर्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वहीं कांग्रेस का कहना है कि हिसार हमेशा से कुछ समूहों का गढ़ रहा है और उसने अच्छा मुकाबला किया।
बिश्नोई के पिता भजन लाल ने 2009 लोकसभा चुनाव में हिसार सीट पर अपने निकटम प्रतिद्वन्द्वी आईएनएलडी के संपत सिंह पर 6,983 मतों से जीत दर्ज की थी। सिंह हालांकि बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। साल 2009 के चुनाव में भी जयप्रकाश तीसरे स्थान पर रहे थे। उस चुनाव में जयप्रकाश को 2,04,539 मत प्राप्त हुए थे।
आपस में नहीं, भ्रष्टाचार से लड़िए
अगस्त में जब रामलीला मैदान पर एक बुजुर्ग गांधीवादी ने पूरी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, उस वक्त लगा था कि देश में बदलाव की एक नई मशाल जल चुकी है। यह लड़ाई भ्रष्टाचार और नागरिक अधिकारों को लेकर थी, जो काफी हद तक कामयाब रही।लेकिन, लगता है कि इस सफलता ने अन्ना हजारे की टीम के लोगों का मिजाज थोड़ा खऱाब कर दिया। वे अतिरेकवादी हो चले। मेरा मानना है कि उन्हें लगने लगा कि आम जनमानस उनके साथ है और वे हर तरफ, हर मुद्दे पर क्रांति करने की माद्दा रखते हैं। शायद यही वजह है कि टीम अन्ना के सदस्य राजनीतिक मुद्दों पर खुला हस्तक्षेप करने लगे हैं। हिसार में कांग्रेस के खिलाफ अभियान छेड़ने का ऐलान इसी अति उत्साह का नतीजा है। इससे पहले यूपी में अन्ना का भ्रमण का ऐलान और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्रों रायबरेली और अमेठी में जनमत संग्रह कराना भी इसी अतिरकेवादी वादी कदम का हिस्सा है।धीरे-धीरे टीम का बड़बोलापन भी सामने आने लगा। अऱविंद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया था कि अन्ना हजारे संसद से ऊपर है। हालांकि उनके कहने का संदर्भ यह था कि आम आदमी संसद के ऊपर है और इसी अधिकार के तहत अन्ना भी संसद के ऊपर है। इसी दरम्यान टीम अन्ना के खास सहयोगी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कश्मीर मुद्दे पर अपना बयान दे दिया। इस बयान का नतीजा क्या हुआ? सुप्रीम कोर्ट के उनके ही चेंबर में उन पर हमला। इसके ठीक एक दिन बाद दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में उनके समर्थकों की पिटाई।
ये जो जुबानी तोपें दागने का सिलसिला शुरू हुआ तो इसके गोले खुद टीम अन्ना पर गिरने लगे। नतीजा अब खुद अन्ना हजारे ने अपने सिपहसालारों की बयान बाजी से किनार कसना शुरू कर लिया है। शुक्रवार को उन्होने बाकायदा बयान जारी कर प्रशांत भूषण के बयान पर पल्ला झाड़ लिया। कहा कि यह उनके निजी विचार हैं। इससे पहले उन्होंने अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण को अहंवादी (ईगोइस्ट) करार देते हुए कहा था कि अनशन के दौरान उन्हें सही फीडबैक नहीं दी जाती थी।जिस टीम ने भ्रष्टाचार और आम आदमी की समस्याओं की लड़ाई के लिए अस्त्र उठाया था, आज वह आपसी मतभेदों में उलझकर रह जा रही है। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी शनिवार को कह दिया कि हजारे की टीम को केवल उन्हीं मुद्दों पर अपनी राय रखनी चाहिए जो उनके एजेंडे में है। उन्होंने केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कभी-कभी ज्यादा बोलने के चक्कर में ऐसी चीजें सामने आ जाती हैं। लब्बोलुआब यह है कि टीम अन्ना की इस भीतरी कलह को देखकर सरकार और कम से कम कांग्रेस मन ही मन खुश हो रही होगी। दरअसल, पिटाई वगैरह यही सब फंडा है। श्रीराम सेना के मुखिया प्रमोद मुतालिक ने तो भूषण पर हमले वाले दिन ही कह दिया था कि इसमें उनके कार्यकर्ता नहीं शामिल थे। तो फिर कौन लोग थे जो खुद को शहीद भगत सिंह क्रांति सेना का सिपाही बताकर इतनी कायराना हरकत कर गए। टीम अन्ना के लिए इन झगड़ों में पड़ने का वक्त नहीं है ये। मेरी राय में भ्रष्टाचार और चुनाव सुधार इन दोनों मुद्दों पर उसे अर्जुन की तरह चिड़िया की आंख पर निगाहें टिकानी होगी
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