शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

आपस में नहीं, भ्रष्टाचार से लड़िए


अगस्त में जब रामलीला मैदान पर एक बुजुर्ग गांधीवादी ने पूरी सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, उस वक्त लगा था कि देश में बदलाव की एक नई मशाल जल चुकी है। यह लड़ाई भ्रष्टाचार और नागरिक अधिकारों को लेकर थी, जो काफी हद तक कामयाब रही।लेकिन, लगता है कि इस सफलता ने अन्ना हजारे की टीम के लोगों का मिजाज थोड़ा खऱाब कर दिया। वे अतिरेकवादी हो चले। मेरा मानना है कि उन्हें लगने लगा कि आम जनमानस उनके साथ है और वे हर तरफ, हर मुद्दे पर क्रांति करने की माद्दा रखते हैं। शायद यही वजह है कि टीम अन्ना के सदस्य राजनीतिक मुद्दों पर खुला हस्तक्षेप करने लगे हैं। हिसार में कांग्रेस के खिलाफ अभियान छेड़ने का ऐलान इसी अति उत्साह का नतीजा है। इससे पहले यूपी में अन्ना का भ्रमण का ऐलान और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्रों रायबरेली और अमेठी में जनमत संग्रह कराना भी इसी अतिरकेवादी वादी कदम का हिस्सा है।
धीरे-धीरे टीम का बड़बोलापन भी सामने आने लगा। अऱविंद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया था कि अन्ना हजारे संसद से ऊपर है। हालांकि उनके कहने का संदर्भ यह था कि आम आदमी संसद के ऊपर है और इसी अधिकार के तहत अन्ना भी संसद के ऊपर है। इसी दरम्यान टीम अन्ना के खास सहयोगी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कश्मीर मुद्दे पर अपना बयान दे दिया। इस बयान का नतीजा क्या हुआ? सुप्रीम कोर्ट के उनके ही चेंबर में उन पर हमला। इसके ठीक एक दिन बाद दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में उनके समर्थकों की पिटाई।
ये जो जुबानी तोपें दागने का सिलसिला शुरू हुआ तो इसके गोले खुद टीम अन्ना पर गिरने लगे। नतीजा अब खुद अन्ना हजारे ने अपने सिपहसालारों की बयान बाजी से किनार कसना शुरू कर लिया है। शुक्रवार को उन्होने बाकायदा बयान जारी कर प्रशांत भूषण के बयान पर पल्ला झाड़ लिया। कहा कि यह उनके निजी विचार हैं। इससे पहले उन्होंने अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण को अहंवादी (ईगोइस्ट) करार देते हुए कहा था कि अनशन के दौरान उन्हें सही फीडबैक नहीं दी जाती थी।
जिस टीम ने भ्रष्टाचार और आम आदमी की समस्याओं की लड़ाई के लिए अस्त्र उठाया था, आज वह आपसी मतभेदों में उलझकर रह जा रही है। कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी शनिवार को कह दिया कि हजारे की टीम को केवल उन्हीं मुद्दों पर अपनी राय रखनी चाहिए जो उनके एजेंडे में है। उन्होंने केजरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कभी-कभी ज्यादा बोलने के चक्कर में ऐसी चीजें सामने जाती हैं। लब्बोलुआब यह है कि टीम अन्ना की इस भीतरी कलह को देखकर सरकार और कम से कम कांग्रेस मन ही मन खुश हो रही होगी। दरअसल, पिटाई वगैरह यही सब फंडा है। श्रीराम सेना के मुखिया प्रमोद मुतालिक ने तो भूषण पर हमले वाले दिन ही कह दिया था कि इसमें उनके कार्यकर्ता नहीं शामिल थे। तो फिर कौन लोग थे जो खुद को शहीद भगत सिंह क्रांति सेना का सिपाही बताकर इतनी कायराना हरकत कर गए। टीम अन्ना के लिए इन झगड़ों में पड़ने का वक्त नहीं है ये। मेरी राय में भ्रष्टाचार और चुनाव सुधार इन दोनों मुद्दों पर उसे अर्जुन की तरह चिड़िया की आंख पर निगाहें टिकानी होगी

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