शनिवार, 26 फ़रवरी 2022


 मिथकों से मुकाबिल राजधानी लखनऊ की दहलीज

 पढ़िये- बाराबंकी की ग्राउंड रिपोर्ट

बाराबंकी...राम नगरी अयोध्या और लक्ष्मण नगरी लखनऊ का सेतु। प्रदेश की राजधानी से निकटता इतनी कि बाराबंकी के लोग जब लखनऊ के लिए निकलते हैं तो मन में आंगन से निकल दहलीज पर पहुंचने के भाव होते हैं। इस भूमि ने राजनीतिक आकाश पर कई सितारे टांके हैं। रक्षा मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री रह चुके धुर समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा समेत बहुसंख्य नाम हैं। खुमार बाराबंकवी का जिला इस समय चुनावी खुमारी में है


और निगाह उन मिथकों पर है जो यहां की राजनीति से जुड़े हुए हैं। यहां की नब्ज टटोल रहे हैं उप समाचार संपादक पवन तिवारी-

'तीनौ पाल्टी लड़ि रहीं। एत्तै समझ ल्यो आप।' तत्काल छनी पकौड़ी की गर्म भाप को सांस से ठंडी करने के संघर्ष के बीच दादा राम मिलन ने हमको एक पंक्ति में चुनावी हाल सुनाया। अगला सवाल - 'अभी जो सरकार है, उससे खुश हैं?' जवाब में कोई कोताही नहीं - 'खुस तौ हन। मुला हम तौ हाथी वाले हन। अउर कहां गिनन जइबै।' आशय यह कि दलित हैं तो बसपा में ही गिने जाएंगे। दादा के माथे की झुर्रियां उनके सत्तर पार होने की गवाही दे रही थीं। वे बाराबंकी के जैदपुर विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं।

खरमिटाव का समय है। स्थानीय भाषा में सुबह के नाश्ते को खरमिटाव ही कहते है। नाश्ता यानी गले की खराश भर मिटी। अहमदपुर टोल प्लाजा के पास वाले ढाबे पर हलचल है। कड़ाहे में सुनहरी हो चुकी पकौड़ी की एक घान छनकर दोने में परोसी जा चुकी है और इसके साथ ही बातों का सिलसिला भी लंबा होता जा रहा है-'हमाय बाति नोट करौ..मोदी-योगी न होते करोना मइहां गरीब आदिमी भूखन मरि जात।' ललाट पर तिलक। शिखा बंधी हुई। नाम- चंद्रमा बख्श शुक्ल। अपनी बातें पूरी मजबूती से समझाते हैं शुक्ल। सरकार की उपलब्धियां एक सांस में गिना डालते हैं। बताते हैं कि दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले है।

दरियाबाद क्षेत्र के ही प्रमोद कुमार अबकी चौथी बार अपना वोट डालेंगे। कहते हैं कि कोई खुलकर नहीं बोलेगा। लेकिन, मन में सबके यही है कि सरकार ने सुख-दुख और जरूरतों का ख्याल रखा। ढाबे से उठकर हम पड़ोस के उधौली बाजार पहुंचे। युवा सूर्यकांत मिश्र अपनी बात कहने को बेचैन दिखे। इस प्रयास में वे ताजा-ताजा खाए गुुटखे से अपना मुंह भी खाली कर चुके। बोले: कोरोना फैला था तो कोई दिखा नहीं। अब सब वोट मांगने आ रहे। परिवारवाद, घरवाद के अलावा किसी के पास कुछ नहीं। इसी बाजार में बिसातखाना खोल ग्राहक का इंतजार कर रहे रामबाबू गुप्ता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा कहने पर विपक्षी दलों से नाराज हैं। कहते हैं- बुलडोजर बाबा इन लोगों की पार्टी को भी ढहा देंगे।

रामसनेही घाट का भिटरिया चौराहा। सामने सिद्ध हनुमानगढ़ी पर श्रद्धालुओं की कतार है। कोने की चाय-नाश्ते-मिठाई की दुकान पर लोग-बाग जमा हैं। बड़े उत्साही लोग हैं। चुनाव को ओढ़-बिछा रहे हैं। वयोवृद्ध मंशाराम के सिर पर केसरिया टोपी है। यह टोपी क्यों लगाई है दादा? बड़ी ऐंठ में बोले-काहें। हम तौ जनसंघ से सुरू से जुड़ा रहेन। सन 1948 से वोट डारि रहेन। 48 से? पहला चुनाव तो 1951-52 में हुआ था। इस पर वे अटके नहीं। बोले-अरे, परधानी कै चुनाव भवा रहा। बुधवार को इसी बाजार के पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनसभा तय थी। रामसनेही घाट वालों के लिए यह बड़े गर्व का विषय था। राम अनुग्रह प्रसन्नता व्यक्त करते हैं- हम सत्तर साल के हो गए-आज तक हमारे यहां कोई प्रधानमंत्री नहीं आया। रामसनेही बाबा की कृपा से मोदी जी यहां आ रहे।

तहसील रामसनेही घाट की कचहरी। स्टेशनरी की दुकान पर बड़ी रोचक बहस चल रही। दुकान स्वामी जय प्रकाश तिवारी की व्यवहार कुशल और मुखर हैं। कहते हैं सरकार ने कोरोना में कोई समस्या नहीं होने दी तो वैसा ही काम बेसहारा पशुओं की समस्या दूर करने में क्यों नहीं किया। उनकी बात आगे बढ़ाते हैं- मायाराम यादव।-गोवंश के लिए जो आश्रय स्थल हैं, वहां दिन में तो जानवर रख लिए जाते हैं, रात में फिर छोड़ दिए जाते हैं।

युवा राहुल शुक्ल दर्द बयां करते हैं-सरकार ने कोई कमी नहीं की है, लेकिन निचले स्तर पर उसके अमल पर और ध्यान देना होगा। धान खरीद की वेबसाइट तो है, लेकिन ऐन मौके पर ब्लाक हो जाती है। भिटरिया चौराहे पर फल की रेहड़ी लगाने वाले रहमतउल्ला को प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के बारे में कुछ मालूम नहीं। कहते हैैं कि बात तो यह अच्छी है साहब, लेकिन हम जान ही नहीं सके। रामनगर विधानसभा क्षेत्र के मथुराबाजार में किराना दुकान चला रहे अहमद कहते हैं-एक काम सरकार ने बहुत अच्छा किया कि चोरी-छिनैती, वसूली बंद है।

बाराबंकी : कुछ रोचक बातें

कुल छह विधानसभा सीटें हैं। 2017 के चुनाव में भाजपा ने पांच तो सपा ने एक सीट हासिल की। हालांकि इस बीच उप चुनाव में भाजपा जैदपुर की अपनी एक सीट गंवा बैठी। यहां से भाजपा के विधायक उपेंद्र सिंह ने 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए। उनके इस्तीफे के बाद खाली जैदपुर सीट पर उप चुनाव में सपा के गौरव कुमार ने जीत हासिल की। इस तरह अब यहां भाजपा के चार और सपा के दो विधायक हैं।


तीन सीटें हाई-प्रोफाइल हैं। दरियाबाद, कुर्सी और रामनगर। दरियाबाद से पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप सपा से मैदान में हैं। भाजपा विधायक सतीश शर्मा ने पिछले चुनाव में छह बार के विधायक व पूर्व मंत्री राजीव कुमार सिंह को 50 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था। यह जिले की सबसे बड़ी जीत थी। दूसरी चर्चित सीट कुर्सी से बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। तीसरी सीट रामनगर है, जहां पूर्व मंत्री फरीद महफूज किदवई सपा से और भाजपा से शरद अवस्थी मैदान में हैं।


क्या टूटेंगे मिथक : रामनगर के बारे में कहा जाता है कि साल 1985 के बाद से यहां से कभी कोई दोबारा चुनाव नहीं जीता। एक मिथक और था कि रनर ही यहां विनर होते हैं। इसे भाजपा के शरद अवस्थी ने तोड़ दिया। वह 2017 में यहां से विधायक तो बने, लेकिन 2012 के चुनाव में रनर नहीं थे। रनर थे-बसपा के अमरेश कुमार।


इसी तरह सदर सीट से जुड़ा भी एक दिलचस्प तथ्य है- यहां से भाजपा कभी चुनाव नहीं जीत सकी। बाकी सीटों पर भी ऐसे ही रोचक मुकाबले चल रहे हैं। देखना होगा कि इस बार ये मिथक टूटते हैं कि नहीं।


शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

खीरी हिंसा के सदमे से उबर वोट की चोट करने को आतुर तिकुनिया,

 जानें-क्या है यहां का चुनावी माहौल


आज से पांच महीने पहले लखीमपुर खीरी जिले का एक गुमनाम कस्बा था तिकुनिया। नेपाल सीमा से सटे इस व्यापारिक कस्बे का नाम बीते साल तीन अक्टूबर को हुई हिंसा के बाद देश और दुनिया में छा गया। हिंसा में आठ लोगों की जान चली गई थी।

तिकुनिया, [पवन तिवारी]। नेपाल सीमा से सटा यह कस्बा आज से पांच महीने पहले गुमनाम सा था। तीन अक्टूबर को किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद राष्ट्रीय फलक पर यह सुर्खियों में आ गया। आठ लोगों की जान गई थी। इसके बाद यहांं फैले रोष को शांत करने में शासन और प्रशासन तंत्र के पसीने छूट गए। एसआईटी इस मामले की जांच कर आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। निघासन विधानसभा क्षेत्र में हुई इस घटना का लखीमपुर खीरी के चुनाव पर क्या प्रभाव है? इस पूरे चुनावी परिदृश्य पर पढ़ें दैनिक जागरण की खास रिपोर्ट।

यह किसी सदमे का सन्नाटा है। यह किसी गहरे जख्म के भरने की प्रतीक्षा की खामोशी है। पास से गुजर रहे इक्का-दुक्का प्रचार वाहन इस शून्यता को तोड़ते हैैं। दिनचर्या में व्यस्त लोग तीन अक्टूबर की हिंसा के बारे में मौन साध लेते हैं। मानो वे उस भयावह घटना को हमेशा के लिए भुला देना चाहते हों। इससे इतर कुछ बात छेडि़ए तो उनके चेहरों पर कुछ मुस्कान खिंच पाती है। वे अपनी समस्याओं पर बात करते हैैं। सरकार की कल्याणकारी नीतियों को बखानते हैैं। कुछ शिकवे करते हैैं। कुछ समीकरण बैठाते हैं।

जीरो ग्राउंड यानी तीन अक्टूबर को जहां हिंसा हुई थी, वहां पहुंचकर हम सबसे पहले रू-ब-रू होते हैं अपने झाले (घर) में चारपाई पर बैठ दोस्त पूरन सिंह के साथ चाय पी रहे बिचित्तर सिंह से। क्या हुआ था उस दिन..? वे मौन रहे। फिर चुप्पी तोड़ते हैं-मैं तो था नहीं जी। बाहर गया था। लौटा तो पता चला। बात खत्म। इससे ज्यादा वे इस पर कुछ कहने-सुनने में अन्यमनस्क दिखे। चुनाव पर बात छेड़ी तो कहने लगे-जी इस बारे में तो पब्लक (पब्लिक) ही बता सकती है। चाय की चुस्कियों में उनके साझीदार पूरन सिंह अपनी टीस जाहिर करते हैैं-हम तो गुरुद्वारे में रहते हैैं। हमें अनाज का एक दाना भी नहीं मिला। खेती है नहीं। राजगीरी करते हैैं। 

वरिष्ठ नेता अहमद हसन का शनिवार सुबह निधन हुआ था।

कुछ दूरी पर अपनी ठेलिया खींचने में मगन नौजवान जिबराइल की राय इससे अलग है-जाने क्या सोच कर जोर से कहते हैैं-हम तौ कमल कै फूल पर वोट देबै। वो क्यों? कहते हैं सरकार से हमका गल्ला (अनाज) मिलत है।

बाइक से जा रहे युवा करमजीत सिंह हमारी टीम देखकर रुकते हैं। कहते हैं-एक बात मेरी जरूर लिखणा जी..। इस कांड के आरोपित को बेल दिलाकर ठीक नहीं किया। हमारे किसान भाई तो बेकुसूर होकर भी जेल में हैैं। और ये बंदा छूट गया। इसका नुकसान चुनाव में दिखेगा। 

तिराहे से सटे बरसोला कला गांव की प्रधान सना परवीन के पति मोहम्मद मियां तिकुनिया हिंसा को कोई मुद्दा नहीं मानते। कहते हैं- बाढ़ यहांं की सबसे बड़ी परेशानी है। यही मुद्दा है। मोहाना और कर्णाली नदी की बाढ़ हर साल हमारे खेत लील जाती है। इसका कोई उपाय नहीं हो सका। पशुओं से समस्या जरूर थी, लेकिन अब वे पकड़-पकड़कर गोशालाओं में भेजे जा रहे हैं। सहनखेड़ा के पूर्व प्रधान अहमद खां बेबाकी से कहते हैैं कि भाजपा यहां मजबूत जरूर रही, पर जो घटना हुई उससे 20-25 हजार की तादाद में सिख नाराज हैैं। इसका नफा-नुकसान चुनाव में हो सकता है।

शफीक अहमद सुखना बरसोला के प्रधान हैं। कहते हैैं कि सबसे बड़ी समस्या बेसहारा पशुओंं की है। हालांकि सरकार ने गोशालाओं की व्यवस्था की है जिससे अब कम नुकसान हो रहा। हमने करीब 22 ट्राली जानवर गोशालाओं में भेजे हैं। लखबीर सिंह का झाला भी तिकुनिया तिराहे के किनारे है। कहते हैैं कि हमने कुछ देखा नहीं। घर के अंदर थे हम। वह इसे कोई मुद्दा भी नहीं मानते। योगी सरकार की तारीफ भी करते हैैं-कहते हैैं एक नंबर की सरकार है। बस, जानवर वाली दिक्कत है। एक तरफ हम रखवाली करते हैं तो दूसरे छोर पर हमारा बेट

हमारे घर तो उस दिन चूल्हा नहीं जला: पवन कश्यप

- खीरी हिंसा में जान गंवाने वाले पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए। कहते हैं कि एक दिन पहले जब मुख्य आरोपित आशीष मिश्रा को जमानत मिली तो हमारे घर चूल्हा नहीं जला

तिकुनिया की विशेषता ः नेपाल की निकटतम व्यापारिक मंडी है जहां सुई से लेकर जहाज (यहां जहाज का आशय बड़े वाहन से)तक मिलता है। यह मंडी 90 प्रतिशत नेपाल पर निर्भर है। बाजार में खड़ी नेपाली नंबर की गाडिय़ां इसकी पुष्टि भी करती हैैं। 

कई प्रमुख दफ्तर इस बाजार में हैं

कस्टम, पुलिस चेक पोस्ट, आइबी, एसएसबी की सिविल विंग।

अगर रेलवे ट्रैक न हो तो नेपाल की नदियां मोहाना और कर्णाली इस बाजार को अपनी आगोश में ले लें।

लखीमपुर जिले के चुनावी परिदृश्य पर एक नजरः 2017 के चुनाव में आठों विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में गईं। चर्चा के दौरान यह बात निकलकर आई कि इस बार श्रीनगर, सदर और मोहम्मदी के विधायकों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही। कारण यह कि पूरे पांच साल वे जनता से अपेक्षानुरूप जुड़ नहीं सके।

निघासन 

1- भाजपा - शशांक वर्मा

2- सपा- आरएस कुशवाहा

3-बसपा- डॉ. आरए उस्मानी

4. कांग्रेस- अटल शुक्ला

कुल मतदाता: 3,39,473

पुरुष: 1, 83,406

महिला: 1, 56,056

सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

अंकल 66 के, आंटी 28 की..


अंकल प्रणाम, आपको शुभकामनाएं...। दहलीज पर धूप सेंक रहे सिंह अंकल को मैंने बाहर से ही विश ठोंका। शुभकामनाएं...?? किस बात की यार। अंकल विस्मित। अरे, कल आपका जन्मदिन था। हां यार, तुमको भी पता चल गया.. कइसे.. हो! ? फेसबुक से अंकल। ..यार फेसबुक की क्या बात करते हो..। उस पर तो ये 28 साल की हैं। सामने बैठी आंटी की ओर इशारा करते अंकल ने चुहल की। आंटी का चेहरा यूं सिंदूरी हो गया मानो वे किशोर वय हों। मैंने स्थिति संभाली-आंटी हैं ही 28 की, उसमें मजाक की कौन सी बात? अंकल व्यंग्य से मुस्कराए- बोलेः ये लगती भी हैं 28 की और इसी वजह से इनके फालोअर भी ज्यादा हैं फेसबुक पे। आंटी के भरे-सुंदर चेहरे पर अब सुर्खी सी फैल गई। ...वो बेटा ऐसी बात है कि बच्चे हमारा फेसबुक अकाउंट बना रहे थे तो मैंने जो जन्मतिथि बताई, उन्होंने लिख दिया उसका उल्टा-95. बस हो गए हम 28 के। बाकी अंकल तो मजाक करते ही रहते हैं। फिर आंटी ने उनको कनखियों से देखा। ..चावल में से कंकड़ निकाला और अंकल की ओर उछाल दिया। मैं पार्टी की ताकीद कर काम पर निकल गया। दोनों की प्राइवेसी में उस वक्त दखल देना ठीक नहीं था।

पवन

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022


 सरोजनीनगर से भाजपा का टिकट मिलने के बाद राजेश्वर सिंह यहां से  विधायक और मंत्री स्वाती सिंह के आवास पर उनसे मुलाकात करने पहुंचे।

इस बीच, सपा में जाने की अफवाहों के बीच स्वाती सिंह ने कहा कि वह ताउम्र भाजपा में ही रहेंगी।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

 चुनावी हलचलः शार्ट नोट

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  • लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से विधायक और मंत्री स्वाती सिंह को इस बार चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिला।
  • उनके पति दयाशंकर सिंह भी टिकट की आस लगाए थे, लेकिन वह भी न पा सके।
  • दोनों का आपसी झगड़ा पहले से ही कुछ कुछ चर्चा में था
  • हाल ही में एक आडियो लीक होने के बाद यह कलह जगजाहिर हो गई
  • माना जा रहा है इस झगड़े ने दोनों का नुकसान कराया है
  • सरोजनीनगर से इस बार भाजपा ने हाल ही में पुलिस सेवा से वीआरएस लेकर आए राजेश्वर सिंह को मैदान में उतारा है।

रविवार, 30 जनवरी 2022

आला हजरत परिवार की बहू रहीं निदा भाजपा में शामिल

लखनऊ में प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने निदा को सदस्यता दिलाई। निदा का निकाह वर्ष 2015 में दरगाह प्रमुख सुब्हानी मियां के छोटे भाई तस्लीम रजा के बेटे शीरान रजा से हुआ था। कुछ समय बाद ही दोनों में अलगाव हो गया। निदा  मुस्लिम रूढ़ियों के विरुद्ध बोलती रही हैं। तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए आला हजरत फाउंडेशन बनाई।

 

गुरुवार, 27 जनवरी 2022


 आशुतोष टंडन जी के आवास पर गुरुवार को क्या खिचड़ी पकी?

सीट मांगने तो नहीं गए थे

कह रहे कि नहीं

पुराने दोस्त हैं, फोन करके बुलाए थे इसलिए चले गए तहरी भोज में...

मने चुनाव नहीं लड़ेंगे हमारे डिप्टी साहब?