आदाब अर्ज है। ये आपका पोलिंग बूथ है। जनतंत्र में जनता की ताकत यहीं से शुरू होती है और यहीं से खत्म भी। पर एक बात जरूर है, यहां जिस मिसाइल का बटन दबता है उसकी गूंज कम से कम पांच साल सुनाई देती है। बूथ पर आपका स्वागत है। पोलिंग बूथ का खास फोकस वैसे यूपी के विधानसभा चुनाव हैं, पर बूथ पर हर तरह की बहस-मुबाहिसों को जगह मिलेगी।
शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
खीरी हिंसा के सदमे से उबर वोट की चोट करने को आतुर तिकुनिया,
जानें-क्या है यहां का चुनावी माहौल
आज से पांच महीने पहले लखीमपुर खीरी जिले का एक गुमनाम कस्बा था तिकुनिया। नेपाल सीमा से सटे इस व्यापारिक कस्बे का नाम बीते साल तीन अक्टूबर को हुई हिंसा के बाद देश और दुनिया में छा गया। हिंसा में आठ लोगों की जान चली गई थी।
तिकुनिया, [पवन तिवारी]। नेपाल सीमा से सटा यह कस्बा आज से पांच महीने पहले गुमनाम सा था। तीन अक्टूबर को किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद राष्ट्रीय फलक पर यह सुर्खियों में आ गया। आठ लोगों की जान गई थी। इसके बाद यहांं फैले रोष को शांत करने में शासन और प्रशासन तंत्र के पसीने छूट गए। एसआईटी इस मामले की जांच कर आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। निघासन विधानसभा क्षेत्र में हुई इस घटना का लखीमपुर खीरी के चुनाव पर क्या प्रभाव है? इस पूरे चुनावी परिदृश्य पर पढ़ें दैनिक जागरण की खास रिपोर्ट।
यह किसी सदमे का सन्नाटा है। यह किसी गहरे जख्म के भरने की प्रतीक्षा की खामोशी है। पास से गुजर रहे इक्का-दुक्का प्रचार वाहन इस शून्यता को तोड़ते हैैं। दिनचर्या में व्यस्त लोग तीन अक्टूबर की हिंसा के बारे में मौन साध लेते हैं। मानो वे उस भयावह घटना को हमेशा के लिए भुला देना चाहते हों। इससे इतर कुछ बात छेडि़ए तो उनके चेहरों पर कुछ मुस्कान खिंच पाती है। वे अपनी समस्याओं पर बात करते हैैं। सरकार की कल्याणकारी नीतियों को बखानते हैैं। कुछ शिकवे करते हैैं। कुछ समीकरण बैठाते हैं।
जीरो ग्राउंड यानी तीन अक्टूबर को जहां हिंसा हुई थी, वहां पहुंचकर हम सबसे पहले रू-ब-रू होते हैं अपने झाले (घर) में चारपाई पर बैठ दोस्त पूरन सिंह के साथ चाय पी रहे बिचित्तर सिंह से। क्या हुआ था उस दिन..? वे मौन रहे। फिर चुप्पी तोड़ते हैं-मैं तो था नहीं जी। बाहर गया था। लौटा तो पता चला। बात खत्म। इससे ज्यादा वे इस पर कुछ कहने-सुनने में अन्यमनस्क दिखे। चुनाव पर बात छेड़ी तो कहने लगे-जी इस बारे में तो पब्लक (पब्लिक) ही बता सकती है। चाय की चुस्कियों में उनके साझीदार पूरन सिंह अपनी टीस जाहिर करते हैैं-हम तो गुरुद्वारे में रहते हैैं। हमें अनाज का एक दाना भी नहीं मिला। खेती है नहीं। राजगीरी करते हैैं।
वरिष्ठ नेता अहमद हसन का शनिवार सुबह निधन हुआ था।
कुछ दूरी पर अपनी ठेलिया खींचने में मगन नौजवान जिबराइल की राय इससे अलग है-जाने क्या सोच कर जोर से कहते हैैं-हम तौ कमल कै फूल पर वोट देबै। वो क्यों? कहते हैं सरकार से हमका गल्ला (अनाज) मिलत है।
बाइक से जा रहे युवा करमजीत सिंह हमारी टीम देखकर रुकते हैं। कहते हैं-एक बात मेरी जरूर लिखणा जी..। इस कांड के आरोपित को बेल दिलाकर ठीक नहीं किया। हमारे किसान भाई तो बेकुसूर होकर भी जेल में हैैं। और ये बंदा छूट गया। इसका नुकसान चुनाव में दिखेगा।
तिराहे से सटे बरसोला कला गांव की प्रधान सना परवीन के पति मोहम्मद मियां तिकुनिया हिंसा को कोई मुद्दा नहीं मानते। कहते हैं- बाढ़ यहांं की सबसे बड़ी परेशानी है। यही मुद्दा है। मोहाना और कर्णाली नदी की बाढ़ हर साल हमारे खेत लील जाती है। इसका कोई उपाय नहीं हो सका। पशुओं से समस्या जरूर थी, लेकिन अब वे पकड़-पकड़कर गोशालाओं में भेजे जा रहे हैं। सहनखेड़ा के पूर्व प्रधान अहमद खां बेबाकी से कहते हैैं कि भाजपा यहां मजबूत जरूर रही, पर जो घटना हुई उससे 20-25 हजार की तादाद में सिख नाराज हैैं। इसका नफा-नुकसान चुनाव में हो सकता है।
शफीक अहमद सुखना बरसोला के प्रधान हैं। कहते हैैं कि सबसे बड़ी समस्या बेसहारा पशुओंं की है। हालांकि सरकार ने गोशालाओं की व्यवस्था की है जिससे अब कम नुकसान हो रहा। हमने करीब 22 ट्राली जानवर गोशालाओं में भेजे हैं। लखबीर सिंह का झाला भी तिकुनिया तिराहे के किनारे है। कहते हैैं कि हमने कुछ देखा नहीं। घर के अंदर थे हम। वह इसे कोई मुद्दा भी नहीं मानते। योगी सरकार की तारीफ भी करते हैैं-कहते हैैं एक नंबर की सरकार है। बस, जानवर वाली दिक्कत है। एक तरफ हम रखवाली करते हैं तो दूसरे छोर पर हमारा बेट
हमारे घर तो उस दिन चूल्हा नहीं जला: पवन कश्यप
- खीरी हिंसा में जान गंवाने वाले पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए। कहते हैं कि एक दिन पहले जब मुख्य आरोपित आशीष मिश्रा को जमानत मिली तो हमारे घर चूल्हा नहीं जला
तिकुनिया की विशेषता ः नेपाल की निकटतम व्यापारिक मंडी है जहां सुई से लेकर जहाज (यहां जहाज का आशय बड़े वाहन से)तक मिलता है। यह मंडी 90 प्रतिशत नेपाल पर निर्भर है। बाजार में खड़ी नेपाली नंबर की गाडिय़ां इसकी पुष्टि भी करती हैैं।
कई प्रमुख दफ्तर इस बाजार में हैं
कस्टम, पुलिस चेक पोस्ट, आइबी, एसएसबी की सिविल विंग।
अगर रेलवे ट्रैक न हो तो नेपाल की नदियां मोहाना और कर्णाली इस बाजार को अपनी आगोश में ले लें।
लखीमपुर जिले के चुनावी परिदृश्य पर एक नजरः 2017 के चुनाव में आठों विधानसभा सीटें भाजपा के खाते में गईं। चर्चा के दौरान यह बात निकलकर आई कि इस बार श्रीनगर, सदर और मोहम्मदी के विधायकों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही। कारण यह कि पूरे पांच साल वे जनता से अपेक्षानुरूप जुड़ नहीं सके।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ